Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय ईर्ष्या

ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से,

तेरी आग में जलता रहता हूँ,
तेरी लपटों में घिरा रहता हूँ,
तेरी ताप से तड़पता रहता हूँ।

तू मेरे दिल की गहराई में बसी है,
तू मेरे सपनों को तोड़ती है,
तू मेरे जीने को दुश्वार बनाती है,
तू मेरे मन को व्यथित करती है।

परंतु तू न गई मेरे मन से,
तू मेरे साथ रहती है,
तू मेरे जीवन का हिस्सा बन गई है,
तू मेरे दिल की दासी बन गई है।

ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से,
तू मेरे जीवन को प्रभावित करती है,
तू मेरे संबंधों को खराब करती है,
तू मेरे जीवन को दुखद बनाती है।

परंतु मैं तुझे मिटा नहीं सकता,
तू मेरे मन का हिस्सा है,
तू मेरे दिल की गहराई में बसी है,
तू मेरे जीवन का हिस्सा बन गई है।
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर

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2 Comments

Arti khamborkar

21-Sep-2024 09:21 AM

awesome

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madhura

14-Aug-2024 07:49 PM

V nice

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